कभी 100 रुपए की सैलेरी पर ऑफिस बॉय की नौकरी करते थे; आज धान की पराली से बनाते हैं प्लाईवुड, एक करोड़ से ज्यादा का टर्नओवर

Posted By: Himmat Jaithwar
6/13/2021

राजस्थान के रहने वाले बीएल बेंगानी का बचपन तंगहाली में गुजरा। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। पिता कोलकाता के एक जूट मिल में काम करते थे। वे भी उनके साथ वहीं रहते थे। जैसे-तैसे परिवार का खर्च निकलता था। 10वीं के बाद बीएल बेंगानी भी एक कंपनी में काम करने लगे। उन्हें ऑफिस बॉय की नौकरी मिल गई। 100 रुपए महीने के मिलते थे। आज बीएल बेंगानी करोड़ों की कंपनी के मालिक हैं। वे पराली और एग्रीकल्चर वेस्ट से प्लाईवुड बनाकर देशभर में सप्लाई कर रहे हैं।

पढ़ाई के साथ नौकरी भी
बेंगानी कहते हैं कि हमारा परिवार 80 के दशक में राजस्थान से कोलकाता आ गया। पिता फैक्ट्री में काम करते थे, लेकिन पगार बहुत कम थी। इसलिए मैंने 10वीं के बाद शाम के कॉलेज में दाखिला लिया ताकि पढ़ाई के साथ नौकरी भी कर सकूं। मैं शाम में कॉलेज जाता था और दिन में ऑफिस बॉय की नौकरी करता था। मन में कुछ करने की ललक थी और आर्थिक रूप से सम्पन्न था नहीं। इसलिए काफी दिक्कतों के बाद भी दोनों काम साथ में करता रहा। इसी तरह पहले 12वीं और फिर कॉमर्स से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की।

राजस्थान से ताल्लुक रखने वाले बीएल बेंगानी अब चेन्नई में ही शिफ्ट हो गए हैं।
राजस्थान से ताल्लुक रखने वाले बीएल बेंगानी अब चेन्नई में ही शिफ्ट हो गए हैं।

वे बताते हैं कि यहां से थोड़ी राह आसान हुई। कुछ जगह नौकरी के लिए अप्लाई किया। फिर चेन्नई में एक कंपनी में काम मिल गया। अकाउंटेंट के रूप में मुझे नौकरी मिल गई। सैलेरी बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन इतनी आमदनी हो जाती थी कि काम चल जाता था।

प्लाईवुड कंपनी की नौकरी बनी टर्निंग पॉइंट
कुछ साल यहां काम करने के बाद बेंगानी की नौकरी एक प्लाईवुड कंपनी में लग गई। यहां उन्हें मार्केटिंग का काम मिला। बेंगानी के लिए यह काम टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। उन्हें काम के दौरान कई शहरों में घूमने के साथ अलग-अलग प्लाईवुड के बारे में भी जानकारी मिली। उन्हें धीरे-धीरे प्लाईवुड का काम और मार्केट समझ में आने लगा। बेंगानी कहते हैं कि मैं खुद का काम तो बहुत पहले से शुरू करना चाहता था, लेकिन पैसों की तंगी की वजह से कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था। जब मुझे लगा कि अब कुछ सेविंग्स हो गई हैं और मार्केट की समझ भी अच्छी हो गई है, तो कुछ नया करने का प्लान किया।

पैसे की बचत हो गई तो शुरू की खुद की कंपनी
साल 2000 में बेंगानी ने खुद की प्लाईवुड की एक कंपनी शुरू की। वे म्यांमार जैसे देशों से हाईक्वालिटी की प्लाईवुड मंगाकर इंडिया में उसकी मार्केटिंग करते थे। कुछ दिनों बाद उन्हें रियलाइज हुआ कि दूसरे देशों से खरीदकर बेचने से बेहतर है इसे खुद ही तैयार करना। इससे क्वालिटी भी सही रहेगी और लागत भी कम आएगी।

इस प्लाईवुड की मदद से घर और ऑफिस यूज के हर प्रोडक्ट और फर्नीचर तैयार किए जा सकते हैं।
इस प्लाईवुड की मदद से घर और ऑफिस यूज के हर प्रोडक्ट और फर्नीचर तैयार किए जा सकते हैं।

इसके बाद उन्होंने चेन्नई में खुद की ही एक फैक्ट्री शुरू कर दी। वे प्लाईवुड तैयार करने लगे। जल्द ही उन्हें इसका फायदा भी हुआ। एक के बाद एक बड़े डीलर्स से उनका टाइअप होते गया। वे चेन्नई के बाहर भी खुद के प्रोडक्ट की मार्केटिंग करने लगे। उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर करोड़ रुपए पार कर गया। हालांकि 2015 में बेंगानी ने ये कंपनी बेच दी। और नए सिरे से इकोफ्रेंडली मॉडल पर काम करना शुरू किया।

पुरानी कंपनी बेचकर इकोफ्रेंडली स्टार्टअप शुरू किया
बीएल बेंगानी बताते हैं कि अब मेरा बेटा और बेटी भी बड़े हो गए हैं और साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने तय किया कि वे लोग कुछ ऐसा काम करें जिससे कि कमाई के साथ सोशल चेंज भी हो। पर्यावरण का भी फायदा हो, क्योंकि प्लाईवुड तैयार करने में पेड़ों की कटाई भी होती है। इसलिए 2017 में उन्होंने धान की पराली और एग्रो वेस्ट से प्लाईवुड बनाने का एक नया स्टार्टअप शुरू किया।

वे कहते हैं कि करीब दो साल के रिसर्च और कई देशों के दौरे के बाद हमने ये आइडिया इम्प्लीमेंट किया था। चूंकि हमारे पास बजट की दिक्कत नहीं थी इसलिए हमने इसकी प्रोसेसिंग यूनिट लगाई। जहां हम पराली और एग्रो वेस्ट से प्लाईवुड बोर्ड तैयार करते हैं। यह पूरी तरह इकोफ्रेंडली है। इसे आसानी से रिसाईकिल्ड किया जा सकता है। साथ ही इससे कॉमन लकड़ी के प्लाईवुड की तरह ही घर और ऑफिस यूज के हर प्रोडक्ट और फर्नीचर तैयार किए जा सकते हैं। हमने लैब से इस सर्टिफाइड भी करा लिया है।

पिछले तीन साल से वे इकोफ्रेंडली स्टार्टअप चला रहे हैं। उन्होंने 40 लोगों को रोजगार भी दिया है।
पिछले तीन साल से वे इकोफ्रेंडली स्टार्टअप चला रहे हैं। उन्होंने 40 लोगों को रोजगार भी दिया है।

कैसे तैयार करते हैं प्रोडक्ट?
वे कहते हैं कि फिलहाल हम लोग राइस मिल से धान की पराली ले रहे हैं, लेकिन आगे हमारी योजना है कि हम सीधे किसानों तक पहुंचें। इससे हम उनकी मदद कर पाएंगे और उन्हें पराली की समस्या से निपटारा भी मिल जाएगा। पराली को फैक्ट्री में लाने के बाद कई लेवल के प्रोसेसिंग से गुजरना पड़ता है। इसके लिए उन्होंने अपनी फैक्ट्री में मशीनें लगा रखी हैं। सबसे पहले पराली को प्रोसेस करके फाइबर तैयार किया जाता है। इस फाइबर को फिर प्रोसेस करके मशीन की मदद से प्लाईवुड तैयार होता है।

उन्होंने कई डीलर्स से और कंपनियों से टाइअप किया है। जो इनसे प्लाईवुड बोर्ड खरीदकर दूसरे राज्यों सप्लाई करते हैं। भारत में करीब हर जगह उनके प्रोडक्ट की सप्लाई हो रही है। उनकी इस कंपनी का भी टर्नओवर एक करोड़ से ज्यादा का है। उन्होंने 40 लोगों को रोजगार भी दिया है। साथ ही 100 से ज्यादा लोग इनडायरेक्ट रूप से जुड़कर अपनी जीविका चला रहे हैं।

धान की पराली और एग्रो वेस्ट से आप और क्या बिजनेस कर सकते हैं?

आजकल देश में ऐसे कई स्टार्टअप्स हैं जो धान की पराली और एग्रो वेस्ट से कप और प्लेट तैयार कर रहे हैं।
आजकल देश में ऐसे कई स्टार्टअप्स हैं जो धान की पराली और एग्रो वेस्ट से कप और प्लेट तैयार कर रहे हैं।

भारत में साउथ के साथ-साथ छत्तीसगढ़, बिहार, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों में धान की बड़े लेवल पर खेती होती है। धान की फसल कटने के बाद किसानों के पास सबसे बड़ी समस्या पराली को लेकर होती है। अगर वो इसे जलाते हैं तो दिक्कत, स्टोर करके रखते हैं तो दिक्कत। हालांकि अब इस समस्या से निजात पाने के लिए देश में कुछ इस तरह के स्टार्टअप लॉन्च हुए हैं जो इसकी मदद से इकोफ्रेंडली प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। कुछ कंपनियां किसानों से सीधे पराली खरीद लेती हैं।

अगर आप पराली से प्रोडक्ट तैयार करना चाहते हैं तो दो से तीन लाख रुपए की लागत से कर सकते हैं। आप छोटी मशीनें खरीदकर पराली के फाइबर से प्लेट, ग्लास और बर्तन तैयार कर सकते हैं। इसकी ट्रेनिंग के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से जानकारी ली जा सकती है। IIT और IIM जैसे संस्थान भी वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर कई तरह के कोर्स कराते हैं। इसके साथ ही कई किसान मशरूम उगाने के लिए और वर्मीकंपोस्ट बनाने के लिए भी बड़े लेवल पर धान की पराली का इस्तेमाल करते हैं। इससे उनकी लागत बहुत हद तक बच जाती है।



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