मोदी ने कहा- 3-4 साल के विमर्श और लाखों सुझावों के बाद नई शिक्षा नीति तैयार की; अब वॉट यू थिंक नहीं, हाऊ टू थिंक पर जोर

Posted By: Himmat Jaithwar
8/7/2020

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज हायर एजुकेशन पर हो रहे कॉन्क्लेव में संबोधित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 3-4 साल के व्यापक विचार-विमर्श और लाखों सुझावों के बाद एजुकेशन पॉलिसी मंजूर की गई है। अलग-अलग क्षेत्र और विचारधाराओं के लोग अपनी राय दे रहे हैं। ये हेल्दी डिबेट है, ये जितनी ज्यादा होगी उतना ही लाभ मिलेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति आने के बाद देश के किसी भी वर्ग से ये बात नहीं उठी कि किसी तरह का भेदभाव है। ये एक इंडिकेटर भी है कि लोग वर्षों से चली आ रही शिक्षा व्यवस्था में जो बदलाव चाहते थे, वो उन्हें मिले हैं।

कार्यक्रम में एचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और कई यूनिवर्सिटीज के वाइस चांसलर भी शामिल हुए। 'ट्रांसफॉर्मेशनल रिफॉर्म्स इन हायर एजुकेशन अंडर नेशनल एजुकेशन पॉलिसी' की थीम वाले इस इवेंट को यूजीसी और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर लाइव टेलीकास्ट भी किया गया।

मोदी के संबोधन की मुख्य बातें

मैं पूरी तरह से आपके साथ
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इतना बड़ा रिफॉर्म जमीन पर कैसे उतारा जाएगा। इस चैलेंज को देखते हुए व्यवस्थाओं को बनाने में जहां कहीं कुछ सुधार की जरूरत है, वह हम सभी को मिलकर करना है। आप सभी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने में सीधे तौर पर जुड़े हैं। इसलिए आप सब की भूमिका बहुत अहम है। जहां तक पॉलिटिकल विल की बात है, मैं पूरी तरह कमिटेड हूं, आपके साथ हूं।

नेशनल वैल्यूज के साथ गोल्स तय किए
हर देश अपनी शिक्षा व्यवस्था को नेशनल वैल्यूज के साथ जोड़ते हुए, नेशनल गोल्स के अनुसार रिफॉर्म्स करते हुए आगे बढ़ता है, ताकि देश का एजुकेशन सिस्टम अपनी वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों का फ्यूचर तैयार करे। भारत की पॉलिसी का आधार भी यही सोच है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21वीं सदी के भारत की फाउंडेशन तैयार करने वाली है।

नई नीति में स्किल्स पर फोकस
21वीं सदी के भारत में हमारे युवाओं को जो स्किल्स चाहिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस पर विशेष फोकस है। भारत को ताकतवर बनाने के लिए, विकास की नई ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए इस एजुकेशन पॉलिसी में खास जोर दिया गया है। जब भारत का स्टूडेंट चाहे वो नर्सरी में हो या फिर कॉलेज में, तेजी से बदलते हुए समय और जरूरतों के हिसाब से पढ़ेगा तो नेशन बिल्डिंग में कंस्ट्रक्टिव भूमिका निभा पाएगा।

अब इनोवेटिव थिंकिंग पर जोर
बीते कई साल से हमारे एजुकेशन सिस्टम में बदलाव नहीं हुए, जिससे समाज में क्यूरोसिटी और इमेजिनेशन की वैल्यू को प्रमोट करने के बजाय भेड़ चाल को प्रोत्साहन मिलने लगा था। कभी डॉक्टर तो कभी इंजीनियर तो कभी वकील बनाने की होड़ लगने लगी। इससे बाहर निकलना जरूरी था। हमारे युवाओं में क्रिटिकल और इनोवेटिव थिंकिंग विकसित कैसे हो सकती है, जब तक शिक्षा में पैशन और परपज ऑफ एजुकेशन न हो।

आज होलिस्टिक अप्रोच की जरूरत बीते कई साल से हमारे एजुकेशन सिस्टम में बदलाव नहीं हुए, आज गुरुवर रबींद्रनाथ की पुण्यतिथि भी है। वो कहते थे कि उच्चतर शिक्षा हमारे जीवन को सद्भाव में लाती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का वृहद लक्ष्य इसी से जुड़ा है। इसके लिए टुकड़ों में सोचने की बजाय हॉलिस्टिक अप्रोच की जरूरत है। आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति मूर्त रूप ले चुकी है।

शुरुआती दिनों में सबसे बड़े सवाल यही थे कि हमारी शिक्षा व्यवस्था युवाओं को क्यूरोसिटी और कमिटमेंट के लिए मोटिवेट करती है या नहीं? दूसरा सवाल था कि क्या शिक्षा व्यवस्था युवाओं को एम्पावर करती है। देश में एक एम्पावर सोसायटी के निर्माण में मदद करती है। आप इन सवालों और इनके जवाबों से भी संतुष्ट हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाते समय इन सवालों पर गंभीरता से काम किया गया।

बदलते दौर में हम 10+2 से आगे निकले
एक नई विश्व व्यवस्था खड़ी हो रही है। एक नया स्टैंडर्ड भी तय हो रहा है। इसके हिसाब से भारत का एजुकेशन सिस्टम खुद में बदलाव करे, ये भी किया जाना बहुत जरूरी था। स्कूल करिकुलम के 10+2 से आगे बढ़ना इसी दिशा में एक कदम है। हमारे अपने स्टूडेंट्स को ग्लोबल सिटीजन भी बनाना है, साथ ही ध्यान रखना है कि वे जड़ों से भी जुड़े रहें। घर को बोली और स्कूल में पढ़ाई की भाषा एक होने से सीखने की गति बेहतर होगी। जहां तक संभव हो 5वीं तक बच्चों को उनकी मातृभाषा में ही पढ़ाने पर सहमति दी गई है। इससे उनकी नींव मजबूत होगी और आगे की पढ़ाई के लिए बेस भी मजबूत होगा।

अब हाउ टू थिंक पर जोर
अभी तक की व्यवस्था में वॉट यू थिंक पर फोकस रहा है, जबकि इस नीति में हाऊ टू थिंक पर जोर दिया जा रहा है। हर प्रकार की जानकारी आपने मोबाइल पर है, लेकिन जरूरी ये है कि क्या जानकारी अहम है। नई नीति में इस बात पर ध्यान रखा गया है। ढेर सारी किताबों की जरूरत को खत्म करने पर जोर दिया गया है। इन्क्वायरी, डिस्कवरी, डिस्कशन और एनालिसिस पर जोर दिया जा रहा है। इससे बच्चों में सीखने की ललक बढ़ेगी। हर छात्र को यह मौका मिलना ही चाहिए कि वह अपने पैशन को फॉलो करे।

रीस्किल-अपस्किल से प्रोफेशन बदल सकेंगे
अक्सर ऐसा होता है कि कोई कोर्स करने के बाद स्टूडेंट जॉब के लिए जाता है तो पता चलता है कि जो पढ़ा वो जॉब की जरूरतों को पूरा नहीं करता। इन जरूरतों का ख्याल रखते हुए मल्टीपल एंट्री-एग्जिट का ऑप्शन दिया गया है। स्टूडेंट वापस अपने कोर्स से जुड़कर जॉब की जरूरत के हिसाब से पढ़ाई कर सकता है।

कोई कोर्स बीच में छोड़कर दूसरे में एडमिशन लेना चाहे तो यह भी संभव है। हायर एजुकेशन को स्ट्रीम से मुक्त कर देना, मल्टीपल एंट्री और एग्जिट के पीछे लंबी दूरी की सोच के साथ हम आगे आए हैं। उस युग की तरफ आगे बढ़ रहे हैं, जहां कोई व्यक्ति जीवनभर किसी एक प्रोफेशन में नहीं टिका रहेगा। इसके लिए उसे लगातार खुद को रीस्किल और अपस्किल करते रहना होगा।

नई शिक्षा नीति क्या है?
सरकार ने 30 जुलाई को नई शिक्षा नीति घोषित की थी। इसमें स्कूलों के एडमिनिस्ट्रेशन को लेकर बड़े बदलाव किए गए हैं। जैसे कॉम्प्लेक्स या क्लस्टर के तौर पर स्कूलों का मैनेजमेंट किया जाएगा। इलाके का सैकंडरी स्कूल आस-पास के सभी छोटे स्कूलों का प्रमुख बनाया जाएगा। देशभर में एक सरकारी और एक निजी स्कूल को साथ जोड़ने की बात भी कही गई है। ऑनलाइन एजुकेशन को बढ़ावा दिया जाएगा। पढ़ाई के पैटर्न में 10 साल के अंदर धीरे-धीरे बदलाव किए जाएंगे।



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