बढ़ते बजट, मुनाफे के मौके और स्टार्स का बढ़ता फैनबेस, एक साथ कई भाषाओं में फिल्म बनाना इंडस्ट्री का नया ट्रेंड

Posted By: Himmat Jaithwar
6/11/2021

मुम्बई। आजादी के बाद भाषा के नाम पर झगड़े भी हुए और उसी आधार पर राज्य भी बंटे। अभी भी बेलगाम जैसे विवाद थम नहीं रहे, लेकिन अब उत्तर और दक्षिण के स्टार्स मिलकर कई भाषाओं में फिल्में बना रहे हैं। लिहाजा उत्तर-दक्षिण की दूरियां मिट रही हैं।

इसके पीछे अहम कारण है, फिल्मों की कमाई का दायरा बढ़ाना। फिल्मों का बजट बढ़ने लगा है तो फायदा बढ़ाने के लिए हिंदी के साथ तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम भाषा में भी फिल्में बनाई जा रही हैं, ताकि एक साथ ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाया जा सके।

क्या है स्ट्रैटजी?
तमिल फिल्मों के नामी प्रोड्यूसर और डिस्ट्रीब्यूटर एस.आर. प्रभु ने बताया कि हमारी स्ट्रैटजी भी बहुत सिंपल है। हम फिल्म की कास्ट मिक्सअप करते हैं, जैसे कि कुछ किरदार साउथ के आर्टिस्ट करेंगे तो कुछ किरदार में हिंदी के आर्टिस्ट को साइन किया जाएगा। कुछ फिल्मों में हिंदी के प्रोड्यूसर और साउथ का डायरेक्टर, ऐसे भी मिक्सअप होता है।

प्रभु कहते हैं कि साउथ और नॉर्थ की फिल्म का टेस्ट अलग-अलग है। इसलिए ज्यादातर बहुभाषीय फिल्में या तो सुपरहीरो पर हैं या पीरियड फिल्में हैं। पूरे भारत में हर वक्त हिट होती रहे, ऐसी फिल्में लगातार बनाना मुश्किल होगा। यह दौर लंबा चले, ऐसी मुझे उम्मीद नहीं।

यह सही है कि इस दौर से स्टार्स का फायदा ही है। हिंदी के स्टार्स का दक्षिण में तो दक्षिण के स्टार्स का हिंदी में फैन बेस बढ़ेगा। इसके साथ उनकी एंडोर्समेंट की कमाई भी बढ़ेगी।

पहले से भुनाने होंगे सारे राइट्स
मुद्दा यह भी है प्रोड्यूसर के लिए डबिंग राइट्स या रीमेक राइट्स एक एक्स्ट्रा बोनस के जैसा होता है, लेकिन बहुभाषीय फिल्म में उनको यह राइट्स पहले से ही भुनाने होंगे। इसका सही फायदा उठाना है, तो सही समय पर सही फिल्म में इनवेस्ट करना होगा।

बाहुबली ने दिखाई राह, बढ़ा फिल्मों का दायरा
तमिल और तेलुगु इंडस्ट्री के ट्रेड एनालिस्ट रमेश बाला ने बताया कि बाहुबली (1 और 2) की सफलता से साउथ के मेकर्स को पता चला कि एक साथ हिंदी में रिलीज करने में बड़ा फायदा है। वैसे तो साउथ और नॉर्थ के फिल्मी दर्शकों का टेस्ट बिलकुल अलग-अलग है। नॉर्थ में आयुष्मान खुराना की मल्टीप्लेक्स जोनर की फिल्में चल जाएंगी, लेकिन साउथ में सिंगल स्क्रीन भी हाउसफुल कर देने वाले हीरो चाहिए।

एक्शन की एक यूनिवर्सल अपील है। यूपी-बिहार के छोटे कस्बों में भी एक्शन फिल्में चलती हैं। इसलिए ज्यादातर बहुभाषीय फिल्में एक्शन ओरिएंटेड होती हैं।

सदमा-रोजा और इस दौर में क्या अंतर?
रमेश बाला बताते हैं सदमा, रोजा, अप्पू राजा जैसी फिल्में वास्तव में साउथ के लिए ही बनाई गई थीं। वहां पर हिट होने के बाद ये फिल्में हिंदी में डब की गईं। अब प्रोजेक्ट अनाउंस होते वक्त ही बता दिया जाता है कि यह हिंदी समेत तीन या पांच भाषा में रिलीज होगी।

साउथ के हीरो अब पूरे भारत के स्टार
मशहूर राइटर-गीतकार और अब हॉलीवुड फिल्मों के हिंदी रूपांतर में चोटी का नाम बन चुके मयूर पुरी बताते हैं कि पहले डबिंग में क्वालिटी पर फोकस नहीं था। अब ‘जंगल बुक’ जैसी हॉलीवुड फिल्म के लिए आला दरजे के वॉयस एक्टर्स चुने गए। डबिंग में डायलॉग्स की क्वालिटी और लोकलाइजेशन पर बहुत फोकस हुआ है। अब सब समझ चुके हैं कि दूसरी भाषाओं में बाजार बढ़ाना है तो क्वालिटी डबिंग ही चाहिए।

डबिंग के मुकाबले सबटाइटलिंग में खर्च कम रहता है, लेकिन पढ़ते-पढ़ते फिल्म देखने में बहुत सारे लोग कंफर्टेबल महसूस नहीं करते। जो खास पढ़ना नहीं जानते, उनका मार्केट तो मिलता ही नहीं। दूसरी तरफ, डबिंग का ज्यादा खर्चा, उससे बढ़ती मार्केट रीच के सामने कुछ भी नहीं।

वॉयस एक्टिंग क्राफ्ट को मिला सम्मान
हिंदी में ‘हैरी पॉटर’ को अपनी आवाज देने वाले वॉयस आर्टिस्ट राजेश कवा ने बताया कि बहुभाषीय फिल्मों की वजह से वॉयस एक्टिंग की क्राफ्ट को वह सम्मान मिला है, जिसका वह शुरू से ही हकदार था।

अब बहुभाषीय फिल्मों में कुछ हिंदी के स्टार और कुछ दक्षिण के स्टार के मिक्स अप से हर भाषा के वॉयस एक्टर को फायदा मिलता है। जैसे हिंदी के वॉयस एक्टर किसी तमिल या तेलुगु एक्टर के लिए आवाज देंगे, तो वहां के वॉयस आर्टिस्ट अक्षय कुमार या दूसरे हिंदी एक्टर की आवाज बनेंगे।

प्रभास ने तो अब हिंदी की तालीम पा ली है और वे खुद हिंदी डबिंग करना पसंद करते हैं, लेकिन बाकी स्टार्स के हिसाब से डबिंग आर्टिस्ट के लिए मौके का पूरा बाजार खुल चुका है।



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