कहानी उन 5 विधायकों की, जिन पर हत्या के मामले दर्ज हैं; लेकिन दबंगई इतनी कि जेल में रहकर भी चुनाव जीत जाते हैं

Posted By: Himmat Jaithwar
7/9/2020

नई दिल्ली. कानपुर के बिकरु गांव में 8 पुलिसवालों की हत्या करने वाले गैंगस्टर विकास दुबे को पुलिस ने गुरुवार को उज्जैन से गिरफ्तार कर लिया है। विकास को लेकर इस समय उत्तर प्रदेश की सियासत भी गरमा गई है। हर तरफ यही बात चल रही है कि आखिर यूपी में कैसे ये हत्यारे और अपराधी पनपते हैं और राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते हैं।

उत्तर प्रदेश की विधानसभा में 5 विधायक ऐसे हैं, जिनपर हत्या या हत्या की कोशिश के गंभीर अपराध दर्ज हैं। इनमें से एक विधायक की तो पिछले साल हत्या के मामले की वजह से ही विधायकी भी जा चुकी है। 

उन्हीं  5 बाहुबली विधायकों की कहानी...

1.  विजय कुमार : कहते हैं मुझे बाहुबली नहीं, जानबली कहो
विजय कुमार या विजय मिश्रा एक ही हैं। यूपी में एक जिला है भदोही। यहां का धानापुर गांव, बनारस से महज 50 किमी की दूरी पर है। यही धानापुर गांव में विजय मिश्रा का जन्म हुआ था। 1980 के दशक में काम के लिए गांव से निकलकर भदोही आ गए। यहां आकर पहले पेट्रोल पंप शुरू किया और फिर उनके ट्रक चलने लगे। 

विजय मिश्रा ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से शुरू की थी। 90 के दशक में उनकी राजीव गांधी से भी नजदीकियां थीं, लेकिन उनके जाने के बाद मिश्रा का कांग्रेस से साथ छूट गया और वो नेताजी (मुलायम सिंह यादव) के संपर्क में आ गए। 

2001 में उन्हें पहली बार सपा ने विधायक का टिकट दिया। लेकिन, एक शर्त भी रखी और वो शर्त ये थी कि उन्हें ज्ञानपुर के साथ-साथ हंडिया, भदोही और मिर्जापुर के सपा उम्मीदवारों को जितवाना होगा। साथ ही भदोही लोकसभा सीट भी जितवाएंगे। इत्तेफाक से ये सभी सीटें सपा जीत भी गई।

विजय कुमार भदोही जिले की ज्ञानपुर सीट से विधायक हैं। उनके ऊपर 16 आपराधिक मामले दर्ज हैं।

उसके बाद 2007 का चुनाव भी मिश्रा जीत गए। 2012 का भी जीत गए। लेकिन 2017 के चुनाव से पहले अखिलेश यादव अपनी बाहुबली-विरोधी छवि को मजबूत करना चाहते थे। लिहाजा, अखिलेश ने मिश्रा का टिकट काट दिया। 

सपा से टिकट कटने के बाद विजय मिश्रा निषाद पार्टी की टिकट पर ज्ञानपुर सीट से विधानसभा चुनाव लड़े और जीतकर भी आए। हालांकि, जिस पार्टी से उन्होंने 2017 का चुनाव जीता था, उस पार्टी को वो छोड़ चुके हैं।

एक समय था जब विजय मिश्रा पर 60 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज थे। लेकिन, 2017 के विधानसभा चुनाव में दाखिल उनके हलफनामे में उन्होंने खुदके ऊपर 16 आपराधिक मामले होने की बात मानी थी। हालांकि, इसके बाद भी विजय इन आपराधिक मामलों को विपक्ष की साजिश बताते हैं। 

विजय मिश्रा पर हत्या और हत्या की कोशिश जैसे आपराधिक मामले दर्ज हैं। आज से 10 साल पहले जुलाई 2010 में बसपा सरकार में नंद कुमार नंदी पर जानलेवा हमला हुआ था। नंद कुमार अभी योगी सरकार में मंत्री हैं। 12 जुलाई 2010 को नंदी की हत्या के इरादे से एक बम विस्फोट किया गया। इस धमाके में नंदी तो बाल-बाल बच गए, लेकिन उनके सिक्योरिटी गार्ड और एक पत्रकार की मौत हो गई। 

एक इंटरव्यू में विजय मिश्रा ने कहा था कि उन्हें बाहुबली नहीं बल्कि जानबली कहा जाए। जानबली यानी जिसके साथ जनता का बल हो। विजय मिश्रा यूपी के कितने बड़े बाहुबली हैं, इसका अंदाजा इससे भी लगा लीजिए कि जिस 2017 के चुनाव में पूरी यूपी में मोदी लहर चल रही थी। भाजपा 312 सीट जीत चुकी थी। उसी चुनाव में विजय मिश्रा लगातार चौथी बार विधायक बनकर आए।

2. अशोक सिंह चंदेल : 23 साल पहले भरे बाजार में 5 लोगों को गोली मार दी
उत्तर प्रदेश में एक जिला है हमीरपुर। इसी जिले में एक विधानसभा सीट है, जिसका नाम भी हमीरपुर है। इसी सीट से एक भाजपा के विधायक थे अशोक सिंह चंदेल। ये 2017 में इसी सीट से चुनकर आए थे, लेकिन पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें 23 साल पुराने एक मामले में आजीवन कारावास की सजा सुना दी और उनकी विधायकी रद्द कर दी। 

उन्हें इसी मामले में 2002 में बरी भी कर दिया गया था, लेकिन 2019 में फिर दोष साबित हो ही गया। 2017 के चुनाव में दिए हलफनामे में उन्होंने अपने ऊपर 9 आपराधिक मामले दर्ज होने की बात मानी थी। इसमें हत्या, किडनैपिंग जैसे अपराध भी थे।

अशोक चंदेल 2017 में हमीरपुर से विधायक बने थे। लेकिन, 23 साल पुराने मामले में सजा मिलने से उनकी विधायकी रद्द हो गई।

अशोक चंदेल को जिस मामले के लिए सजा मिली है, वो 26 जनवरी 1997 का है। उस दिन अशोक चंदेल अपने कुछ साथियों के साथ हमीरपुर के सुभाष नगर पहुंचा। यहां पहुंचकर उसने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी राजेश शुक्ल समेत 5 लोगों को सरेआम गोली मार दी। 

इस पूरे मामले के एकमात्र चश्मदीद गवाह राजीव शुक्ल ने अशोक चंदेल समेत 10 लोगों पर मुकदमा दर्ज कराया। मामले में कार्रवाई भी हुई। कुछ समय तक अशोक जेल में भी रहे। लेकिन 1999 में जब अशोक जेल में थे, तभी बसपा ने उन्हें हमीरपुर लोकसभा सीट से लड़वा दिया। वो जीत भी गए और जेल में ही रहते-रहते लोकसभा भी पहुंच गए। 

लेकिन, कभी सांसद और विधायक रहे अशोक चंदेल पर सिर्फ यही एक मामला नहीं है। उनके ऊपर कानपुर के किदवई नगर में रणधीर गुप्ता नाम के कारोबारी के हत्या के साथ-साथ एक सीओ के साथ दबंगई दिखाने का मामला भी दर्ज है।

3. इंद्र प्रताप तिवारी : हत्या का मामला था, फिर भी टिकट मिला, लेकिन हार गए
इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी। अभी अयोध्या की गोसाईगंज सीट से भाजपा के विधायक हैं। लेकिन, पहले सपा से जुड़े थे। खब्बू तिवारी पर हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग और एक्स्टॉर्शन समेत कई आधे दर्जन से ज्यादा मामले दर्ज हैं। 

तिवारी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कॉलेज से ही कर दी थी। वो छात्रसंघ चुनावों से ही सक्रिय राजनीति में जाना चाहते थे। खब्बू तिवारी की लोकप्रियता युवाओं में ज्यादा है, जिसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि छात्रसंघ में आज भी साकेत काॅलेज में उनसे मिलकर सभी छात्र नेता चुनाव लड़ते हैं।

इंद्र प्रताप तिवारी ने 2017 में जनता से वादा किया था कि जब तक जीत नहीं जाते, तब तक शादी नहीं करेंगे। और चुनाव जीतने के बाद ही उन्होंने शादी की। उनकी शादी के रिसेप्शन में 1.5 लाख से ज्यादा लोग आए थे।

खब्बू तिवारी 2007 में सपा की टिकट पर गोसाईगंज से चुनाव लड़ रहे थे। उस समय उनके प्रचार में अखिलेश यादव ने ये तक कह दिया था कि खब्बू तिवारी की उम्र में हर किसी से गलती होती है, लेकिन अगर जनता इन्हें मौका देगी तो ये गलती नहीं दोहराएंगे। तिवारी पर एक मुस्लिम ठेकेदार नैयर इकबाल की हत्या का मामला दर्ज है।

इसके अलावा दिसंबर 2018 में भी ठेकेदार अजय प्रताप सिंह की घर में घुसकर गोली मारकर हत्या करने का आरोप भी है। हालांकि, बाद में फॉरेन्सिक रिपोर्ट में सामने आया था कि अजय प्रताप सिंह ने घर पर ही आत्महत्या कर ली थी।

खब्बू तिवारी 2007 में सपा की टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। 2012 में बसपा की टिकट चुनाव लड़े और फिर हार गए। उसके बाद 2017 में भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े और जीत गए। 

4. सुरेश्वर सिंह : एक ही परिवार के तीन लोगों की हत्या का मामला था, अब बरी हो गए
भाजपा के सुरेश्वर सिंह यूपी के बहराइच जिले की महसी विधानसभा सीट से विधायक हैं। वो यहां से 2017 में दूसरी बार विधायक चुने गए। 2017 में दाखिल एफिडेविट के मुताबिक, सुरेश्वर सिंह पर 6 आपराधिक मामले दर्ज हैं। उन पर हत्या और हत्या की कोशिश जैसे गंभीर मामले भी हैं। हालांकि, पिछले साल बहराइच की एक अदालत ने उन्हें 24 साल पहले हुए ट्रिपल मर्डर केस से बरी कर दिया था।

दरअसल, 29 जून 1995 को सिसैया चूणामणि गांव के पूर्व प्रधान गोकरन सिंह अपने भाई अमिरका सिंह और भतीजे बजरंगी सिंह के साथ एक जमीन की रजिस्ट्री करवाकर अपने घर लौट रहे थे। तभी रास्ते में घात लगाकर बैठे बदमाशों ने तीनों को गोलियों से भून डाला था। इसमें तीनों की मौत हो गई थी।

भाजपा विधायक सुरेश्वर सिंह पर 24 साल से ट्रिपल मर्डर का केस चल रहा था। पिछले साल ही उन्हें इस मामले में बरी किया गया है।

इस पूरे मामले में विधायक सुरेश्वर सिंह, उनके बड़े भाई बृजेश्वर सिंह समेत 11 लोगों को आरोपी बनाया गया था। हालांकि, समय के साथ दो आरोपी की मौत भी हो गई। करीब 24 साल तक ये मुकदमा अदालत में चलता रहा और पिछले साल सितंबर में बहराइच की एडीजे कोर्ट ने सुरेश्वर सिंह को बरी कर दिया। हालांकि, उनके बड़े भाई बृजेश्वर सिंह समेत 5 को इस मामले में उम्रकैद की सजा हुई है।

अपने ऊपर हत्या का मामला होने के बाद भी सुरेश्वर सिंह की राजनैतिक शख्सियत परवान चढ़ती गई। वो दो बार विधायक बन गए। उनके भाई बृजेश्वर ग्राम की पत्नी प्रधान से ब्लॉक प्रमुख की कुर्सी तक पहुंच गई।

5. मुख्तार अंसारी : 15 साल से जेल में, लेकिन फिर भी चुनाव जीतता है
यूपी में अपराध की दुनिया में मुख्तार अंसारी एक बड़ा नाम है। उसे बाहुबली नेता के रूप में जाना जाता है। मुख्तार लगातार पांच बार से विधायक है और पिछले 15 सालों से जेल में बंद है। उस पर मर्डर, किडनैपिंग और एक्सटॉर्शन जैसे मामलों में 40 से ज्यादा केस उसके खिलाफ दर्ज हैं। 

उसकी दबंगई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह जेल में रहते हुए भी चुनाव जीतता है और अपने गैंग को भी चलाता है। मुख्तार का जन्म यूपी के गाजिपुर जिले में हुआ था। उसके दादा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे तो पिता कम्युनिस्ट नेता थे। 

यूपी की राजनीति में मुख्तार अंसारी का नाम सबसे बड़े माफिया में गिना जाता है। वो इतना बड़ा बाहुबली है कि पिछले 15 साल से जेल में है, लेकिन हर बार चुनाव जीतता आ रहा है।

मुख्तार को छात्र जीवन से ही दबंगई पसंद थी। 1988 में मुख्तार का नाम पहली बार हत्या के एक मामले से जुड़ा। हालांकि, सबूतों के अभाव में वह बच निकला। इसके बाद 90 के दशक आते-आते वह ज़मीन के कारोबार और ठेकों की वजह से पूर्वांचल में अपराध की दुनिया में अपनी पैठ बना चुका था। 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या से भी अंसारी का नाम जुड़ा था।



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