पीडीपी के साथ सरकार बनाई, ताकि कश्मीर में भाजपा की पकड़ मजबूत हो, भरोसेमंद अफसर कश्मीर भेजे, सत्यपाल मलिक को राज्यपाल बनाया

Posted By: Himmat Jaithwar
8/5/2020

तारीख थी 26 जून 2019। इस दिन अमित शाह गृहमंत्री बनने के बाद पहली बार दो दिन के दौरे पर जम्मू-कश्मीर पहुंचे थे। उस समय कहा गया था कि शाह अमरनाथ यात्रा के लिए सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेंगे।

शाह के लौटने के करीब एक महीने बाद 24 जुलाई को एनएसए अजीत डोभाल सीक्रेट मिशन पर श्रीनगर पहुंचे। उनके लौटते ही घाटी में 10 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती कर दी गई। अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को जल्द से जल्द घाटी से लौटने की एडवाइजरी जारी की गई। 30 साल में ये पहली बार था जब केंद्र सरकार की तरफ से ऐसी एडवाइजरी जारी हुई थी।

कश्मीर में जब ये सब हलचल हो रही थी, तब कई तरह के कयास भी लग रहे थे। पहला कयास तो यही था कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है और सीमा पर कुछ भी हो सकता है। क्योंकि उससे पहले अमरनाथ यात्रा के रूट पर पाकिस्तानी माइन भी मिली थी। सरकार की तरफ से भी जवानों की तैनाती बढ़ाने को लेकर साफ-साफ नहीं कहा गया था।

बाद में देश को लग रहा था कि राज्य के लोगों को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 35ए को हटाया जाएगा, लेकिन मोदी सरकार ने एक कदम और आगे जाते हुए जम्मू-कश्मीर को खास दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को ही निष्प्रभावी कर दिया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया।

5 अगस्त 2019 को अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के उन सभी खंडों को हटा दिया, जिसके तहत कश्मीर को जो अलग स्वायत्तता मिली थी, जो अधिकार मिले थे, सब हटा लिए गए। केवल एक खंड लागू रहा, जो जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाता था।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को भले ही 5 अगस्त 2019 को हटाया गया हो, लेकिन इसकी तैयारी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से ही शुरू हो गई थी।

मोदी के टॉप एजेंडे में कश्मीर ही था
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का वादा जनसंघ के समय से ही किया जा रहा था। अप्रैल 1980 में बनी भाजपा ने जब 1984 में अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा, तब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का वादा था। उसके बाद से भाजपा ने 10 चुनाव लड़े और इनमें से 9 बार घोषणापत्र में यही वादा किया।

कहा जाता है कि मई 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के दिन ही मोदी ने गृह मंत्री बने राजनाथ सिंह से 9 मिनट राष्ट्रपति भवन में कश्मीर मुद्दे पर चर्चा की थी।

इसके बाद जुलाई 2014 में मोदी ने कश्मीर का दौरा किया। 2014 में ही उन्होंने राज्य के 9 दौरे किए। पहले कार्यकाल में मोदी ने 16 बार जम्मू-कश्मीर का दौरा कर साफ कर दिया कि कश्मीर उनके टॉप एजेंडे में शामिल है। उनके दौरों का मकसद कश्मीर की जनता से सीधे जुड़ना था। प्रधानमंत्री मोदी हर साल सेना के जवानों के साथ दिवाली मनाने के लिए भी कश्मीर जाते हैं। कश्मीर पर मोदी सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की नीति अपनाई। श्यामा प्रसाद मुखर्जी कहते थे कि एक देश में दो विधान नहीं चलेगा। जबकि, अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीर मामले को सुलझाने के लिए 'कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत' की नीति अपनाई थी।

मई 2019 में मोदी दूसरी बार फिर प्रधानमंत्री चुने गए। इस बार अमित शाह भी उनकी कैबिनेट में शामिल हुए और गृहमंत्री बने। मोदी सरकार फरवरी 2019 में ही अनुच्छेद 370 से जुड़ा बिल लाने की तैयारी कर रही थी, लेकिन पुलवामा हमले की वजह से इसे टाल दिया गया। उसके बाद जब अमित शाह ने गृहमंत्री का कार्यभार संभाला, तो उनका पहला काम कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना ही था।

पीडीपी से गठबंधन किया, ताकि राज्य में जड़ें मजबूत हो सकें
जब भाजपा और पीडीपी के बीच सरकार बनाने को लेकर गठबंधन हुआ, तो इसका विरोध दोनों पार्टियों में हुआ। मुफ्ती मोहम्मद सईद, जो पीडीपी यानी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के मुखिया थे, उन्होंने खुद इस गठबंधन को उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का मिलन बताया था। हालांकि, जब गठबंधन बना, तो मुख्यमंत्री भी वही बने थे।

पीडीपी ही नहीं बल्कि, उस समय भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता भी इस गठबंधन के खिलाफ थे, क्योंकि उन्हें अमित शाह के प्लान के बारे में पता नहीं था। कश्मीर में शाह की भरोसेमंद टीम में तीन लोग थे। पहले थे राम माधव, जो भाजपा के महासचिव हैं। दूसरे थे रविंदर रैना, जो भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष थे और तीसरे थे अशोक कौल, जो कश्मीर में भाजपा के महासचिव थे। ये तीनों ही थे, जो इस गठबंधन के आर्किटेक्ट थे।

ऐसा कहा जाता है कि ये अनोखा गठबंधन हुआ ही इसलिए था, ताकि भाजपा को कश्मीर में अपनी जड़ें जमाने में मदद मिल सके। ऐसा हुआ भी। करीब तीन साल तक भाजपा और संघ ने कश्मीर में काम किया। उसके बाद 19 जून 2018 को भाजपा ने गठबंधन तोड़ दिया। ये सब शाह की निगरानी में ही हुआ था। ये पहली बार था जब कश्मीर में शाह की रणनीति कामयाब हुई थी।

इस गठबंधन को तोड़ने के लिए भाजपा ने अजीबो-गरीब तर्क दिया था। भाजपा का कहना था कि ईद के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने कश्मीर में सीजफायर खत्म करने का ऐलान किया था, लेकिन पीडीपी ने इसका विरोध किया था।

दरअसल, 2018 के रमजान में कश्मीर में सीजफायर लागू हुआ था। ये एक तरह का एक्सपेरिमेंट था, जिसे उस वक्त 'रमजान सीजफायर' कहा गया था। इसे इसलिए लागू किया गया था कश्मीर में रमजान के महीने में सुरक्षाबल कोई कार्रवाई नहीं करेंगे, लेकिन कोई हमला होता है तो उससे बचने के लिए जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं।

गठबंधन तोड़ने के बाद क्या हुआ?
इस गठबंधन का सबसे ज्यादा नुकसान पीडीपी को ही हुआ, जबकि भाजपा ने इसका जमकर इस्तेमाल किया। गठबंधन तोड़ने के बाद वहां राज्यपाल शासन लागू हो गया। इससे केंद्र सरकार को कश्मीर में नियुक्तियां करने के दरवाजे खुल गए, जो बाद में अनुच्छेद 370 को हटाने में हथियार की तरह साबित हुए। उस समय कश्मीर में अनुच्छेद 370 की वजह से राष्ट्रपति शासन के बजाय राज्यपाल शासन ही लागू होता था।

सबसे पहले मोदी सरकार ने बीवीआर सुब्रमण्यम को जम्मू-कश्मीर का चीफ सेक्रेटरी नियुक्त किया। एंटी-नक्सल एक्सपर्ट और इंटरनल सिक्योरिटी एक्सपर्ट के. विजय कुमार को कश्मीर भेजा गया। के. विजय कुमार छत्तीसगढ़ कैडर के अफसर थे। उन्होंने मनमोहन सिंह और मोदी दोनों के साथ काम किया था।

इन दोनों के अलावा जम्मू-कश्मीर के पूर्व चीफ सेक्रेटरी बीबी व्यास को उस समय के राज्यपाल एनएन वोहरा का एडवाइजर नियुक्त किया गया।

आखिर में 23 अगस्त 2018 को सत्यपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया। मलिक भाजपा के सांसद भी रह चुके थे।

आखिरी टास्क था, राज्यसभा में संख्या बल जुटाना
गठबंधन टूट गया। नियुक्तियां भी हो गईं। बिल भी तैयार हो गया। अब सिर्फ एक ही टास्क बचा था और वो था राज्यसभा में कैसे संख्या बल जुटाया जाए? इसके लिए भाजपा के 4 बड़े नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई। इनमें धर्मेंद्र प्रधान, पीयूष गोयल, भूपेंद्र यादव और प्रल्हाद जोशी शामिल थे। इन चारों नेताओं ने अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों से बात की और उन्हें बिल के समर्थन में वोट करने के लिए मनाया।

मोदी सरकार को पहले भी आरटीआई बिल और ट्रिपल तलाक बिल पर राज्यसभा में समर्थन मिल चुका था, तो उसे इस बार भी समर्थन जुटाने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का बिल और दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश में बंटवारे करने वाला बिल राज्यसभा में ही पेश किया गया। वहां से पास होने के बाद अगले दिन इसे लोकसभा में लाया गया था



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