पैसों की कमी के चलते 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी, फिर ऑफिस बॉय की नौकरी की, आज इंटीग्रेटेड फार्मिंग से लाखों कमा रहे

Posted By: Himmat Jaithwar
2/21/2021

महाराष्ट्र के पुणे जिले के मुल्सी तालुके के रहने वाले ज्ञानेश्वर बोडके का बचपन तंगहाली में गुजरा। परिवार बड़ा था, लेकिन आय का साधन न के बराबर था। थोड़ी बहुत जमीन थी, जिससे जीविका जैसे-तैसे चलती थी। ज्ञानेश्वर पढ़-लिखकर कुछ अच्छा बनना चाहते थे, लेकिन घर में कमाने वाला कोई नहीं था। इसलिए 10वीं के बाद उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। बाद में एक परिचित की मदद से पुणे में उन्हें ऑफिस बॉय की नौकरी मिल गई। घर-परिवार का खर्च निकलने लगा, लेकिन अक्सर उन्हें ऐसा लगता था कि वे जितनी मेहनत कर रहे हैं, उतना उनको नहीं मिल रहा है। 10 साल बाद ज्ञानेश्वर ने नौकरी छोड़ दी और गांव लौट गए। यहां आकर उन्होंने बैंक से लोन लिया और फूलों की बागवानी शुरू की। आज उनकी कमाई लाखों में है। वे सैकड़ों किसानों को रोजगार दे रहे हैं।

लोगों ने विरोध किया, लेकिन कोशिश जारी रखी
ज्ञानेश्वर बताते हैं कि मैं सुबह 6 बजे से रात 11 बजे तक ऑफिस में काम करता था। इस बीच कुछ नया करने के बारे में भी प्लान करता रहता था। एक दिन अखबार में मुझे एक किसान के बारे में पढ़ने को मिला, जो पॉलीहाउस विधि से खेती करके 12 लाख रुपए सालाना कमा रहा था। मुझे लगा कि जब वो इतनी कमाई कर सकता है तो मैं क्यों नहीं। यही सोचकर मैंने 1999 में नौकरी छोड़ दी। जब मैं गांव लौटा तो घर के लोगों ने विरोध भी किया। उनका कहना था कि जो कुछ भी कमाई का जरिया था वो भी बंद हो गया। खेती में मुनाफा होता तो लोग बाहर कमाने क्यों जाते?

ज्ञानेश्वर लोकल मार्केट्स में अपने प्रोडक्ट्स की सप्लाई करते हैं। साथ ही वे खुद भी स्टॉल लगाकर सब्जियां बेचते हैं।
ज्ञानेश्वर लोकल मार्केट्स में अपने प्रोडक्ट्स की सप्लाई करते हैं। साथ ही वे खुद भी स्टॉल लगाकर सब्जियां बेचते हैं।

गांव आने के बाद ज्ञानेश्वर ने खेती के बारे में जानकारी जुटाना शुरू किया। नई तकनीक से खेती करने वाले किसानों के पास वे जाने लगे। इसी दौरान पुणे में बागवानी और पॉलीहाउस को लेकर आयोजित हो रहे एक वर्कशॉप के बारे में पता लगा। ज्ञानेश्वर भी वहां पहुंच गए। दो दिनों के वर्कशॉप में उन्हें थ्योरी तो बताई गई, लेकिन प्रैक्टिकल लेवल पर कोई जानकारी नहीं मिली।

17 किमी का सफर कर जाते थे खेती सीखने
ज्ञानेश्वर कहते हैं कि मैं बहुत ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था। जो कुछ मुझे वहां बताया गया वो सब मेरे सिर के ऊपर से गुजर गया। नौकरी मैं छोड़ चुका था और नई खेती के बारे में ठीक से कोई समझा नहीं पा रहा था, लेकिन मैं हार मानने वाला नहीं था। मैंने सोचा कि जो लोग इस फील्ड में काम कर रहे हैं, क्यों न उनके साथ ही रहकर काम सीखा जाए। इसके बाद मैंने एक पॉलीहाउस जाना शुरू किया। मैं साइकिल से 17 किमी का सफर कर वहां जाता था। इसका मुझे फायदा भी हुआ और जल्द ही नई तकनीक के बारे में मुझे बहुत हद तक जानकारी मिल गई।

साल भर में 10 लाख का लोन चुका दिया
खेती करने के लिए उन्होंने बैंक में लोन के लिए एप्लाई किया। थोड़ी बहुत भाग-दौड़ करने के बाद लोन मिल गया। इसके बाद ज्ञानेश्वर ने एक पॉलीहाउस तैयार किया। फिर गुलनार और गुलाब जैसे सजावटी फूलों की खेती शुरू की। कुछ महीनों बाद जब फूल तैयार हो गए तो पहले उन्होंने लोकल मंडी में बेचना शुरू किया। लोगों का रिस्पॉन्स अच्छा मिला तो होटल वालों से भी संपर्क किया। इसके बाद वे पुणे के बाहर भी अपने प्रोडक्ट की सप्लाई करने लगे। ज्ञानेश्वर बताते हैं कि मैंने एक साल के भीतर बैंक को 10 लाख रुपए का लोन चुका दिया। इसको लेकर बैंक के मैनेजर ने मेरी तारीफ भी की थी।

फूलों की खेती में घाटा होने लगा तो सब्जियां उगाना शुरू किया

ज्ञानेश्वर अभी अपने पॉलीहाउस में एक दर्जन से ज्यादा फल और सब्जियां उगा रहे हैं। इनमें ज्यादातर सब्जियां पत्तियों वाली हैं।
ज्ञानेश्वर अभी अपने पॉलीहाउस में एक दर्जन से ज्यादा फल और सब्जियां उगा रहे हैं। इनमें ज्यादातर सब्जियां पत्तियों वाली हैं।

ज्ञानेश्वर बताते हैं कि कुछ साल बाद फूलों की खेती में कमाई घटने लगी। देश में ज्यादातर लोग नर्सरी लगाने लगे, इसलिए भाव घट गया। ऐसे में उनके सामने नई चुनौती आ गई कि अब क्या किया जाए। फिर उन्हें पता चला कि इंटीग्रेटेड फार्मिंग बढ़िया कॉन्सेप्ट है। इसके जरिए अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। उन्होंने उसी पॉलीहाउस में सब्जियों और फलों की खेती शुरू की। तीन से चार महीने बाद सब्जियां निकलने लगी और फिर से उनका काम पटरी पर लौट आया। अभी वे देशी केले, संतरे, आम, देशी पपीते, स्वीट लाइम, अंजीर और कस्टर्ड सेब, सभी सीजनल और ऑफ सीजन सब्जियां उगा रहे हैं। इसके साथ ही अब उन्होंने दूध भी सप्लाई करना शुरू किया है। उनके पास चार से पांच गाय हैं। वे पैकेट्स में दूध भरकर लोगों के घर डिलिवरी करते हैं।

कई शहरों में करते हैं ऑनलाइन डिलिवरी
फसल उत्पादन के बाद ज्ञानेश्वर के सामने बड़ी समस्या थी ग्राहकों के पास अपने प्रोडक्ट को भेजने की। इस बीच उनकी मुलाकात नाबार्ड के कुछ अधिकारियों से हुई। ज्ञानेश्वर ने उनसे कहा कि आप लोग जो प्रोडक्ट मार्केट से खरीदते हैं, अगर वही प्रोडक्ट हम आपके घर पहुंचाएं तो क्या आप खरीदेंगे? ज्ञानेश्वर बताते हैं कि अधिकारियों ने हमसे प्रोडक्ट को खरीदने में दिलचस्पी दिखाई और ट्रायल के लिए कुछ प्रोडक्ट मांगे, जो उन्हें पसंद आए। इसके बाद वे हमारे नियमित ग्राहक बन गए।

अभी ज्ञानेश्वर ने एक ऐप लॉन्च किया है। इसके माध्यम से लोग ऑर्डर करते हैं और उनके घर तक सामान पहुंच जाता है। इसके लिए उन्होंने स्पेशल ऑटो और कुछ लग्जरी बस रखी है, जिसके जरिए वे पुणे, मुंबई, गोवा, नागपुर, दिल्ली और कोलकाता अपने प्रोडक्ट की सप्लाई करते हैं। ज्ञानेश्वर ने गांव के कुछ किसानों के साथ मिलकर अभिनव फार्मिंग क्लब नाम से एक ग्रुप बनाया। अभी इस ग्रुप में तीन सौ से ज्यादा किसान जुड़े हैं। वे बताते हैं कि इस ग्रुप से जुड़ा हर किसान 8 से 10 लाख रुपए सालाना कमाई कर रहा है।

खेती के साथ वे पशुपालन भी करते हैं। अभी उनके पास 4-6 गाए हैं। वे इनका दूध पैक करके सप्लाई करते हैं।
खेती के साथ वे पशुपालन भी करते हैं। अभी उनके पास 4-6 गाए हैं। वे इनका दूध पैक करके सप्लाई करते हैं।

इंटीग्रेटेड फार्मिंग कैसे करें?
इंटीग्रेटेड फार्मिंग मतलब एक समय में एक ही खेत में कई फसलों को उगाना। इसमें एक घटक को दूसरे घटक के उपयोग में लाया जा सकता है। जैसे अगर आप फलों और सब्जियों की खेती करते हैं तो आप गाय और भैंस भी पाल सकते हैं। आपको चारे की कमी नहीं होगी। दूसरी तरफ इन मवेशियों के गोबर का उपयोग ऑर्गेनिक खाद के रूप में किया जा सकता है। इससे कम लागत में अधिक कमाई होती है। साथ ही समय की भी बचत होती है। ज्ञानेश्वर ने अपने एक एकड़ को चार सब-प्लॉट में बांट दिया है। एक हिस्से में फ्रूट्स, दूसरे में विदेशी सब्जियां, तीसरे में दालें और चौथे हिस्से में पत्तेदार सब्जियां उगाते हैं।

पॉलीहाउस कैसे लगवाएं, इसका क्या फायदा है?
पॉलीहाउस खेती में एक ऐसी तकनीक है जिसके माध्यम से ऑफ सीजन में भी सब्जियों और फलों की खेती आसानी से की जाती है। इसका स्ट्रक्चर स्टील से बनाया जाता है और प्लास्टिक की सीट से ऊपर का हिस्सा ढंक दिया जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा है कि बारिश, ओले या गर्मी का इस पर असर नहीं होता है। साथ ही पानी की भी जरूरत कम पड़ती है। ज्ञानेश्वर बताते हैं कि जो लोग पॉलीहाउस लगाना चाहते हैं, वे बैंक से लोन ले सकते हैं। इसके साथ ही 50 फीसदी राज्य सब्सिडी सरकार भी देती है। एक नॉर्मल पॉलीहाउस लगाने में 5-6 लाख रुपए का खर्च आता है, कम से कम 10 साल इसकी लाइफ होती है। जबकि इससे 3-4 लाख रुपए सालाना कमाई की जा सकती है।

पॉलीहाउस शुरू करने के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केन्द्र या कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क किया जा सकता है। अगर किसी सफल किसान ने पॉलीहाउस लगाया है और खेती कर रहा है, तो उससे भी इस खेती के बारे में जानकारी ली जा सकती है।



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