क्या एमजीआर और जयललिता जैसी छाप छोड़ पाएंगे तमिलानाडु के नए सियासी सितारे रजनीकांत और कमल हासन?

Posted By: Himmat Jaithwar
3/12/2020

नई दिल्ली। रजनीकांत ने तमिलनाडु में एक नई पार्टी लॉन्च करने का ऐलान कर दिया है। उनसे पहले कमल हासन मक्कल निधि माइम की पार्टी पिछले लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमा चुकी है। तमिलनाडु की धरती फिल्मी कलाकारों के प्रति बेपनाह मोहब्बत दर्शाती रही है। वह एमजी रामचंद्रन हों या फिर जे. जयललिता राज्य की जनता ने फिल्मों से हटकर सियासत में भी दोनों को सिर पर बिठाया।
तो क्या रजनीकांत और कमल हासन को भी तमिलनाडु की जनता सियासत की बादशाहत सौंपेगी? यह सवाल इसलिए भी लाजिमी है क्योंकि दोनों धाकड़ राजनीतिक शख्सियतों, जयललिता और करुणानिधि के निधन से प्रदेश में दमदार सियासी शख्सियत के उभार का अवसर पैदा हुआ है।

पुराना है रजनीकांत का सियासी सपना
रजनीकांत ने भले ही राजनीतिक दल बनाने का ऐलान अभी किया हो, लेकिन अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का प्रदर्शन 1996 में ही कर दिया था जब उन्होंने एक चुनावी सभा में जयललिता की आलोचना की थी। तब से वह अपने बयानों और गतिविधियों से अपने फैन को मानसिक तौर पर इस बात के लिए तैयार करते रहे हैं कि एक दिन उनकी पॉलिटिकल पार्टी आएगी। अब जब जयललिता और करुणानिधि, दोनों नहीं हैं तो इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता है?

रजनीकांत ने फिल्मों के चयन में भी रखा ध्यान
कमल हासन ने शिवाजी गणेशन की तरह फिल्मों में ऐसी भूमिकाओं को प्राथमिकता दी जो उन्हें श्रेष्ठ कलाकार की पंक्ति में ला खड़ा करे। वहीं, रजनीकांत ने एमजी रामचंद्रन की तरह वैसी भूमिकाओं को पसंद किया जिनसे उनकी छवि आमजन के संरक्षक की बने। संभव है कि शुरू-शुरू में रजनीकांत को ऐसी भूमिकाएं अनचाहे मिली हों, लेकिन जब उन्हें इन भूमिकाओं का आमलोगों पर असर दिखा तो वह इस आकर्षण में बंध गए और फिर जानबूझकर ऐसी भूमिकाएं ही चुनने लगे।

एमजीआर, जयललिता जैसा जलवा दिखा पाएंगे?
तमिलनाडु में दोनों को चाहने वालों की बड़ी संख्या है। रजनीकांत के लिए तो कई फैन जान तक दे सकते हैं, हालांकि कमल हासन का भी फैन बेस कमजोर नहीं है। सवाल उठता है कि क्या रजनीकांत और कमल हासन तमिलानाडु की राजनीति में वही जलवा दिखा पाएंगे जो कभी एमजीआर और फिर जयललिता ने दिखाया था?

एक्सपर्ट्स को संदेह
राजनीतिक पंडित को इसमें शक है। उनका कहना है कि दोनों ही अभिनेता राजनीति को पार्ट टाइम जॉब की तरह ले रहे हैं जबकि एमजीआर ने कड़ी मेहनत करते हुए राजनीति में कदम रखा था और सफलता मिलने तक दिलोजान से लगे रहे थे। एमजीआर ने 25 वर्षों की मेहनत से एक मजबूत सांगठनिक आधार तैयार किया था जबकि रजनीकांत और हासन की मंशा ऐसी नहीं दिख रही है।

क्यों एमजीआर, जयललिता की बराबरी में नहीं हैं रजनीकांत और हासन?
एमजीआर की सियासी दूरदर्शिता के कई किस्से मशहूर हैं। उन्हें जानने वाले याद करते हैं कि कैसे उनसे मिलने जाने वाले कभी उनके घर से मायूस नहीं लौटते थे। एक बार एमजीआर की नजर जब बारिश में भीगते हुए रिक्शा चला रहे एक व्यक्ति पर पड़ी तो उन्होंने 5 हजार रिक्शा चालकों में रेनकोट बांट दिया। वहीं, रजनीकांत अपने चाहने वालों के लिए सुलभ नहीं होते हैं। वह फैन्स से बचने के लिए अपना जन्मदिन भी अपने घर से दूर मनाते हैं। हां, पिछले दो सालों से उनका फैन्स के साथ मेल-मिलाफ थोड़ जरूर बढ़ा है।

एमजीआर की बात तो दूर, जयललिता और करुणानिधि ने भी सियासत में हाड़तोड़ मेहनत की। जयललिता ने 2016 में अपने निधन से कुछ महीने पहले ही विधानसभा चुनाव के लिए 22 बड़ी रैलियां की थीं। करुणानिधि 90 वर्ष की उम्र में भी राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय रहे थे और उन्होंने अपनी वैन से 17 सार्वजनिक सभाएं कीं और 18 भाषण दिए थे।

जयललिता और करुणानिधि ने तमिलनाडु के गांव-गांव का दौरा किया था। आपातकाल में लोगों के साथ खड़े रहे। रजनीकांत और हासन राज्य में बाढ़ और सुनामी जैसी आपदा में कहां थे? यह सच है कि जनता यह सोच कर वोट करती है कि अगर वो कभी मुसीबत फंसी तो मदद करने कौन आगे आएगा, उसके साथ कौन साथ खड़ा होगा? न रजनीकांत के पास कोई कैडर है, न हासन के पास।

खिसका नहीं है जयललिता का जनाधार
मई 2019 के लोकसभा चुनावों के साथ हुए 18 विधानसभा क्षेत्रों के उप-चुनावों के परिणाम काफी अलग थे। डीएमके ने लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की थी, लेकिन विधानसभा उप-चुनावों में दोनों पार्टियों ने बराबर सीटें जीतीं। राजनीतिक विश्लेषक इसे इस नजरिए से देखते हैं कि जयललिता के निधन के बाद भी उन्हें चाहने वाले पार्टी के साथ रहे। इस चुनाव में हासन की मक्कल निधि माइम को सिर्फ 5% वोट मिले थे।

दरअसल, तमिलनाडु की राजनीति लंबे अर्से से भाषा और संस्कृति के ईर्द-गिर्द घूमती रही है। रजनी और हासन में से किसी ने भी इन मुद्दों पर अपना विचार स्पष्ट नहीं किया है। रजनीकांत और कमल हासन के विरोध में एक बात यह भी जाती है कि फैन्स में उनके प्रति वह उत्साह नहीं दिखता है जो अभिनेता विजयकांत के राजनीतिक दल के ऐलान के वक्त दिखा था। विजयकांत ने 2005 में देसिय मुरपोक्कु द्रविड़ कषगम (डीएमडीके) का ऐलान किया था। पार्टी लॉन्च करते ही विजयकांत को जबर्दस्त रिस्पॉन्स मिला था, लेकिन उनकी बिगड़ती सेहत और पारिवारिक कलह ने उगते सियासी सूरज पर बादल का रूप ले लिया।

साथ रहकर खिला पाएंगे गुल?
रजनीकांत और हासन के पक्ष में एक बात यह जरूर है कि दोनों अब तक एक-दूसरे के सियासी विरोधी नहीं बल्कि साथी के रूप में पेश करते आ रहे हैं। जब रजनीकांत ने हासन के चुनाव लड़ने के फैसले का स्वागत किया तो हासन ने रजनीकांत से समर्थन की मांग कर डाली। हालांकि, एक विडंबना भी है- रजनीकांत का झुकाव बीजेपी की तरफ है जबकि हासन बीजेपी के कट्टर विरोधी हैं।



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