पायलट की बजाय अब राज्यपाल कलराज मिश्र क्यों हैं गहलोत के निशाने पर? विधानसभा सत्र बुलाने के पीछे की राजनीति क्या है?

Posted By: Himmat Jaithwar
7/28/2020

राजस्थान में राज्यपाल कलराज मिश्र और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत में ‘तू डाल-डाल, मैं पांत-पांत’ जैसी स्थिति बनी हुई है। राजस्थान में सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत की लड़ाई ने बैकसीट ले ली है और मुद्दा अब राज्यपाल बनाम कांग्रेस हो गया है। इस पूरे प्रकरण में जिस तरह नए चेहरे के तौर पर कलराज मिश्र सामने आए हैं, उससे राजस्थान के राजनीतिक घटनाक्रम में नया मोड़ आ गया है।

पायलट के बजाय राज्यपाल क्यों हैं गहलोत के निशाने पर?

  • राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के बाद यह तय हो गया है कि सदन जब तक नहीं चलेगा, तब तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस सचिन पायलट और उनके समर्थक 18 विधायकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकेंगे।
  • इसी बात को ध्यान में रखते हुए स्पीकर सीपी जोशी ने सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ली। तय किया कि पूरे मामले को सियासी आधार पर लड़ेंगे, कानूनी आधार पर नहीं। इसी वजह से भाजपा और राज्यपाल निशाने पर आ गए हैं।
  • राज्यपाल ने एक नहीं बल्कि दो बार राजस्थान कैबिनेट की विधानसभा सत्र बुलाने की मांग टेक्निकल आधार पर खारिज कर दी। कोरोना महामारी में सोशल डिस्टेंसिंग आदि के पालन समेत सत्र से पहले विधायकों को 21 दिन के नोटिस जैसे कारण गिनाए।

विधानसभा सत्र बुलाने के पीछे की राजनीति क्या है?

  • कांग्रेस चाहती है कि जल्द से जल्द विधानसभा का सत्र बुलाया जाए और विश्वास मत पेश किया जाए। व्हिप का पालन करना पायलट की मजबूरी होगी। यदि व्हिप का पालन नहीं किया तो उन्हें अयोग्य करार देना आसान हो जाएगा।
  • लेकिन, भाजपा और पायलट नहीं चाहते कि विधानसभा का सत्र बुलाया जाए। वे कह रहे हैं कि नियमों के अनुसार कार्यवाही होनी चाहिए। नियमों का ही हवाला देकर राज्यपाल ने अशोक गहलोत की सरकार को उलझा रखा है।
  • दरअसल, विधानसभा सत्र बुलाने से पहले 21 दिन का नोटिस देना होता है। अब दलील दी जा रही है कि मंत्रिपरिषद की सलाह को मानना राज्यपाल का दायित्व है। हकीकत यह है कि राज्यपाल के विवेकाधिकार का मसला अब भी स्पष्ट नहीं है।
  • राजस्थान के मामले में अब तक कैबिनेट ने यह नहीं कहा है कि संवैधानिक संकट है और विश्वास मत हासिल करने के लिए विधानसभा सत्र बुलाया जाए। यदि ऐसा करते तो राज्यपाल को बुलाना भी पड़ता, लेकिन कांग्रेस की उसमें किरकिरी होती।
  • गहलोत और कांग्रेस की कोशिश जनता के सामने यह तस्वीर पेश करना है कि भाजपा और राज्यपाल जनता की चुनी हुई सरकार को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी को लेकर वे राज्यपाल के खिलाफ मुखर है और कांग्रेस सड़क पर उतरी हुई है।

क्या वाकई में कलराज मिश्र और अशोक गहलोत की नहीं बनती?

  • ऐसा बिल्कुल नहीं है। कलराज मिश्र एक अच्छे श्रोता हैं। वे सबकी बात पूरा मन लगाकर सुनते हैं। इसी वजह से न केवल भाजपा में बल्कि कांग्रेस में भी उनके अच्छे मित्र हैं। जब से पायलट प्रकरण शुरू हुआ है, तब से गहलोत उनसे चार बार मुलाकात कर चुके हैं।
  • और तो और, एक जुलाई को राज्यपाल कलराज मिश्र का जन्मदिन था तो उन्हें सबसे पहले शुभकामनाएं देने वालों में मुख्यमंत्री गहलोत भी शामिल थे। जिस पर अपना आभार प्रकट करने में कलराज मिश्र ने भी देर नहीं लगाई थी।
  • कलराज मिश्र से पहले उत्तरप्रदेश के ही पूर्व भाजपा नेता कल्याण सिंह राजस्थान में राज्यपाल थे। तब गहलोत और कल्याण सिंह के टकराव की खबरें अक्सर हेडलाइन बना करती थी। पिछले साल सितंबर में मिश्र राजस्थान पहुंचे और तब से पहली बार टकराव दिख रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी से कैसे रिश्ते हैं कलराज मिश्र के?

  • कलराज मिश्र 2014 में देवरिया से सांसद बने और नरेंद्र मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेस मंत्रालय का पोर्टफोलियो मिला था। 75 वर्ष पर रिटायरमेंट पॉलिसी लागू होने पर खुद ही 2016 में केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफे की पेशकश भी कर दी थी।
  • कलराज मिश्र के ही बयान हैं कि उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनावों की वजह से 2016 में उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया था। 2017 में कैबिनेट में फेरबदल से पहले उन्होंने खुद ही रिजाइन कर दिया था।

राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय रहे थे कलराज मिश्र

  • कलराज मिश्र संगठन के आदमी हैं। लोगों को जोड़ना और जोड़े रखना उन्हें अच्छे से आता है। उत्तरप्रदेश में चार बार भाजपा अध्यक्ष रहे। उन्होंने बाबरी विध्वंस के दौरान कारसेवकों को अयोध्या पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी।
  • लोगों को जोड़े रखने की मिसाल देखिए, एक जुलाई को कलराज मिश्र का जन्मदिन था। ट्विटर पर जितने लोगों ने शुभकामनाएं दी, उनमें से प्रत्येक को व्यक्तिगत तौर पर धन्यवाद दिया। यह सिलसिला उनके जन्मदिन के अगले दिन यानी दो जुलाई को भी जारी रहा था।
  • उत्तरप्रदेश भाजपा में जब कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह-लालजी टंडन में विवाद हुआ था, तब वे किसी के साथ न जाकर पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता बने रहे थे। दोनों पक्षों में शांति की कोशिशें करते देखे गए थे। हालांकि, बाद में कल्याण सिंह ने पार्टी छोड़ दी थी।
  • कलराज मिश्र ने राज्यसभा के अपने कार्यकाल में 16 प्राइवेट मेंबर बिल पेश किए। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इसमें तेजाब की बिक्री को नियंत्रित करने और आपात परिस्थिति में लोगों को अनिवार्य रूप से मेडिकल ट्रीटमेंट देने के मुद्दे शामिल हैं।

बचपन से ही जुड़ गए थे आरएसएस से

  • कलराज मिश्र का जन्म 1 जुलाई, 1941 को उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले के मलिकपुर में हुआ। पिता पंडित रामाज्ञा प्राइमरी स्कूल में एक हेडमास्टर थे और आरएसएस समर्थक भी। मिश्र भी काफी कम उम्र में आरएसएस से जुड़ गए थे।
  • काशी विश्वविद्यालय से उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद सत्यवती जी से 1963 में उनकी शादी हो गई। उनके दो बच्चे हैं। बेटी हेमलता और बेटा अमित मिश्र भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता हैं।
  • 1968 में भारतीय जनसंघ के संगठन सचिव बनकर आजमगढ़ गए। 1972 में गुजरात चुनावों में पार्टी का काम किया। 1974 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़े और पूर्वी उत्तरप्रदेश के कोऑर्डिनेटर बनाए गए।
  • इमरजेंसी के दौरान उन्हें देवरिया जिले के भलौनी में 19 महीने के लिए बंद रखा गया था। 1978 में पहली बार जनता पार्टी की ओर से राज्यसभा गए। सबसे युवा राज्यसभा सांसद के तौर पर भी उन्हें जाना जाता है।
  • भाजपा बनने के बाद मिश्र अगस्त 1991 तक उत्तरप्रदेश के संगठन महासचिव रहे। अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के लिए मजबूत हिंदू लहर बनाने में उनकी अहम भूमिका रही। जिसके बूते पर 1991 के चुनावों में राज्य में पहली बार भाजपा सरकार बनी।
  • 1992 में जब बाबरी मस्जिद गिराई गई तब वे उत्तरप्रदेश में बीजेपी के अध्यक्ष थे। इसके बाद भी लंबे समय तक वे पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर बने रहे। सबसे समन्वय साधकर चलने के गुण की बदौलत चार बार उन्हें इस कुर्सी पर बैठने को मिला।
  • 1997 में भाजपा-बसपा सरकार में कलराज मिश्र ने राज्य में लोक निर्माण विभाग के मंत्री के तौर पर काम किया। आने वाले वर्षों में वे राज्यसभा सांसद के तौर पर काम करते रहे। उत्तप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के प्रभारी भी रहे। नितिन गडकरी जब पार्टी के अध्यक्ष थे तब मिश्र को उपाध्यक्ष बनाया गया।
  • 2012 में उन्होंने लखनऊ-ईस्ट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता। 2014 में आम चुनावों में देवरिया से सांसद बने। मिश्र की रुचि खेलों में रही है और वे उत्तरप्रदेश स्पोर्ट प्रमोशन सेल और आर्चरी के चेयरमैन भी रहे हैं।



Log In Your Account