शिवराज आज अशोकनगर में सभा करेंगे, मगर शहर से 9 किलोमीटर दूर; मिथक- यहां आने के बाद गंवानी पड़ती है मुख्यमंत्री की कुर्सी

Posted By: Himmat Jaithwar
10/10/2020

भोपाल। यहां जो भी मुख्यमंत्री आया, उसकी कुर्सी चली गई। मध्य प्रदेश के 11 मुख्यमंत्रियों के साथ ऐसा ही हो चुका है। पिछले 17 साल में कोई भी मुख्यमंत्री अशोकनगर नहीं गया। चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान शनिवार को चुनाव प्रचार के लिए अशोकनगर और मुंगावली तहसीलों में पहुंच रहे हैं, लेकिन उनके लिए सभा स्थल शहर (अशोकनगर) से 9 किलोमीटर की दूरी पर बनाया गया है। इससे पहले के कार्यकाल में शिवराज यहां पर एक बार भी नहीं आए हैं।

यहां उनके आने के कुछ प्रोग्राम भी बने, लेकिन ऐनवक्त पर रद्द कर दिए गए या फिर उनके लिए स्थान परिवर्तन कर दिया गया। चूंकि चुनाव प्रचार के लिए अशोकनगर जाना बेहद जरूरी था, इसीलिए शिवराज सिंह ने बीच का रास्ता निकाला और एक बार फिर खुद अशोकनगर जाएंगे। अशोकनगर से जजपाल सिंह जज्जी और मुंगावली से मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव भाजपा के प्रत्याशी हैं। इन दोनों सीटों पर उपचुनाव हो रहा है, क्योंकि दोनों नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा के साथ आ गए थे।

मुख्यमंत्री पद गंवाने वाले 10 मुख्यमंत्री ये हैं

कुर्सी गंवाने वाले मुख्यमंत्रियों में 1963 में भगवंत राव मंडलोई, 1967 में द्वारका प्रसाद मिश्रा, 1969 में गोविंद नारायण सिंह, 1975 में प्रकाश चंद्र सेठी, 1977 में श्यामा चरण शुक्ल, 1980 में वीरेंद्र कुमार सकलेचा, 1985 में अर्जुन सिंह, 1988 में मोतीलाल वोरा और 1992 में सुंदरलाल पटवा और 2003 में दिग्विजय सिंह को अपनी सीएम की कुर्सी से हटना पड़ा था।

मुख्यमंत्री की कुर्सियां पलटने वाले अशोकनगर का यह मिथक कितना सही है या कितना गलत है तो कहना मुश्किल है लेकिन सत्ता में रहते हुए जो लोग भी अशोकनगर गए, उनकी कुर्सी उसी दिन में चली गई ऐसे ही कुछ बड़े नाम हैं…

1975 में प्रकाश चंद्र सेठी : तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी इसी साल पार्टी के अधिवेशन में अशोकनगर गए और साल खत्म होते-होते दिसंबर 1975 को उनकी कुर्सी चली गई।

1977 में श्यामा चरण शुक्ला: तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ला तुलसी सरोवर का लोकार्पण करने अशोकनगर गए। इसके बाद 29 मार्च 1977 को राष्ट्रपति शासन लगा और उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा।

1985 में अर्जुन सिंह : 1985 में कांग्रेस के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह भी इस मिथक के जाल में फंस गए। उनके मुख्यमंत्री रहते तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी दौरे पर आए। अर्जुन सिंह को उनके साथ अशोकनगर जाना पड़ा, फिर सियासी हालात ऐसे बने कि उन्हें अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी।

1988 में मोतीलाल वोरा : 1988 में मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा अशोकनगर के रेलवे स्टेशन के फुट ओवरब्रिज का उद्घाटन के लिए रेलमंत्री माधवराव सिंधिया के साथ पहुंचे थे। इसके बाद उन्हें सीएम की कुर्सी से हटना पड़ा।

1992 में सुंदरलाल पटवा : अशोकनगर में कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा शामिल होने पहुंचे। इसके बाद उनकी कुर्सी चली गई। दरअसल, इसी साल अयोध्या के विवादित ढांचे को ढहाया गया था जिसके कारण भाजपा शासित राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और सुंदरलाल पटवा को कुर्सी छोड़नी पड़ी।

2003 में दिग्विजय सिंह: अशोकनगर में कुर्सी गंवाने वालों की फेहरिस्त में दिग्विजय सिंह का नाम भी शामिल है। वे यहां पर 2001 में माधवराव सिंधिया के देहांत के बाद खाली हुई सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रचार के लिए गए थे। फिर भी उनकी कुर्सी नहीं बची। हालांकि उनकी कुर्सी जाने में थोड़ा वक्त लगा। 2003 में उमा भारती ने कुर्सी से बेदखल कर दिया।



Log In Your Account