2011 में बनी फिल्म कॉन्टेजियन में कोरोना वायरस जैसी कहानी; बचाव के दो सबक- अफवाहें न फैलाएं, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें

Posted By: Himmat Jaithwar
4/1/2020

जयपुर. वायरस के आक्रमण पर 2011 में रिलीज हुई स्टीवन सोडरबर्ग की फिल्म कॉन्टेजियन ने वैश्विक महामारी बन चुके कोरोना के कहर के बीच आई-ट्यूंस और अमेजन जैसे वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफाॅर्म पर खूब लोकप्रियता बटोर रही है। वजह... लोगों को इस अदृश्य वायरस के बारे में जानने की इतनी उत्सुकता है कि वे ऐसी फिल्मों से जानकारी ले रहे हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि कोरोना जैसा एक वायरस कितनी तेजी से पूरी दुनिया में फैलकर हर तबके को अपने शिकंजे में ले सकता है। फिल्म के दृश्य कोरोना से लड़ रहे देशों के हालत से काफी मिलते हैं। आज 196 देशों को इस कोरोना वायरस ने इंटरनेशनल ट्रेवल की वजह से अपना शिकार बना लिया। कॉन्टेजियन के अलावा 1995 में अमेरिका में फैले इबोला पर आधारित फिल्म आउटब्रेक व दक्षिण कोरिया में बर्ड फ्लू पर 2013 में रिलीज हुई फिल्म फ्लू भी काफी देखी जा रही है।

सीन 1- इंटरनेट पर होम्योपैथिक दवा वायरल होना, सीन 2- मास्क और राशन की जमाखोरी

  • वायरस हमले के बाद की चुनौतियाें को कॉन्टेजियन में दिखाया है। सामाजिक विघटन, इलाज, संसाधन व हमारे आसपास मौजूद ऐसे लोग जो किसी नियम-कायदे को मानने को तैयार नहीं होते और सबकी जान जोखिम में डाल देते हैं।
  • साल 2019 तक यह फिल्म 270वें नंबर पर थी। दिसंबर 2019 से वुहान में फैले कोराेना वायरस के बाद वाॅर्नर ब्रदर्स की दूसरी सबसे सफल फिल्म बन गई है। नंबर-1 पर अभी तक हैरी पाॅटर सीरीज है।
  • फिल्म में एक फ्रीलांस जर्नलिस्ट व ब्लॉगर एलेक्स जोंस का किरदार लोगों के दिमाग में यह बैठा देता है कि वो वायरस कुदरती नहीं बल्कि जेनेटिकली इंजीनियर्ड है। उसके पास इस मर्ज का होमियोपैथिक इलाज है।
  • जवाब में सेंट्रल डिजीज कंट्रोल के डायरेक्टर डाॅ. एलिस चीवर कहते हैं- जैसे इस घातक वायरस के संपर्क में आने के लिए या तो संक्रमित व्यक्ति या उसके द्वारा छुई चीज के सम्पर्क में आना जरूरी है। वैसे ही डरने के लिए अफवाह या इंटरनेट पर फेक न्यूज के सम्पर्क में आना जरूरी है। 
  • यह वायरस अफवाह के हथियार के साथ लोगों के दिमाग पर हावी होकर उन्हें अनुचित कदम उठाने पर मजबूर करता है। इसलिए मास्क और राशन की जमाखोरी करने लगते हैं।

हमारे सामने दो चुनौतियां

  1. वायरस का ट्रांसमिशन रोकना। सोशल डिस्टेंसिंग से इसेे 75% तक रोक सकते हैं। यह भारी और बड़ा वायरस है और 3-4 फ़ीट की दूरी तक ही जा सकता है। बार-बार साबुन-सेनिटाइजर से हाथ धोएं। बुज़ुर्गों को बाक़ी सदस्यों से अलग रखें। क्योंकि 80% केसों में 60 साल से ज्यादा उम्र के लोग और हार्ट, लंग्स या क्रानिक बीमारी से ग्रसित पेशेंट हैं।
  2. अफवाह के एपीडेमिक को रोकना। वॉट्सएप और सोशल मीडिया पर इसके इलाज और बचाव को लेकर कई दावे किए जा रहे हैं। अफवाह लाखों लोगों को भ्रमित कर सकती है। क्योंकि भारत में ही 40 करोड़ वॉट्सएप यूजर और 26 करोड़ से ज्यादा यूट्यूब यूजर हैं।

चिंता इसलिए : कोरोना का एक मरीज 3 लोगों को संक्रमित कर सकता है

  • फ्लू  का आर नॉट यानी रीप्रोडक्टिव रेट 1.3 है। इसलिए एक शख्स तक फैल सकता है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन हेल्थ एंड परफॉर्मेंस के डायरेक्टर ह्यू मोंटेगोमरी के मुताबिक यह सम्पर्क 10 बार होने पर संक्रमण 14 लोगों को होगा।
  • कोरोना का आर नॉट 3 है। कोरोना पीड़ित एक साथ 3 लोगों को संक्रमित कर सकता है। यही संपर्क 10 बार होने पर 59000 लोगों तक संक्रमण फैलेगा। जैसा द. कोरिया में पेशेंट 31 की वजह से हुआ।

सावधानी : हर मिनट में 3-5 बार छूते हैं चेहरा, इससे बचें

  • हर व्यक्ति एक दिन में लगभग 2000-3000 बार अपने चेहरे को छूता है यानी हर मिनट 3-5 बार। इसके अलावा फर्नीचर, दरवाजे, लिफ्ट के बटन व दूसरे शख्स के संपर्क में आते हैं।
  • सीनियर माइक्रोबायोलोजिस्ट डाॅ. बी लाल गुप्ता के अनुसार, इस वायरस के ऊपर लिपिड की एक परत रहती है जो अपने एंटीडोट साबुन से धोने पर या एल्कोहल के सम्पर्क में आने पर नष्ट हो जाती है। पुराने वायरस से मुकाबले के लिए हमारा शरीर एंटीबॉडीज बनाने में सक्षम है, लेकिन नोवल वायरस के लिए इम्यूनिटी नहीं डवलप हो सकती। इसलिए सावधानी और सफाई ही जरूरी है। 
  • जयपुर के पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट व एपीडिमोलोजिस्ट डाॅ. एसडी गुप्ता ने बताया कि नोवल कोरोनावायरस दरअसल कोविड का म्यूटेंट स्वरूप है। यह 2003 में फैले वायरस सार्स से ज्यादा इंफेक्टिव है।



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